गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -७

वह मुस्काया था शिशु -सा /
रोया भी तो था शिशु की तरह /
न जाने अपने आप क्यों हँसे /
रोते हैं ये शिशु ।

धडकनें बिलकुल काबू में नहीं रहतीं /
जब कोई चला जाता है /
बिलकुल पास आकर ।

नींद आते ही जाग जाता हूँ /
जागते ही नींद आने लगती है /
अजब जिन्दगी है प्यार की ।

जिस्म को तलाश थी रूह की /
रूह थी /
कि जिस्म की तलाश में /
रूह ही अब तक ।

मौन भी चीख पड़ता है कभी -कभी /
मौन रहकर /
मगर चीख घुट कर रह जाती है ।

हर बार एक शक सा रहता है /
शक न होते हुए भी /
ऐसा क्यों होता है किसी के साथ ।

यकीं करते करते अब कहाँ रहा यकीन /
वर्ना यकीं भी कोई करने की चीज है /
यकीं तो होता ही यकीं है .

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