गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -6

अकबका जाना उसके आने से /
छटपटा जाना /
जाने से उसके /
खुला दरवाजा इसी लिए तो है ।

अजनबी की तरह /
एक दुसरे को देखना /
कितनी पीड़ा होती है /
कुछ न कह पाने में ।

किसी और के साथ उसे देखना /
खुद को अनदेखा करना आईने में ।

उसके साथ पूरी रात काट कर भी /
रात काटी सी नहीं लगती ।

तुम इतनी सर्द भी तो नहीं /
कि पास आऊँ /
तुम इतनी गर्मभी तो नहीं /
कि दूर जाऊं /बरसात भी तो नहीं कि भीग जाऊं ।

खुद ही बनाया वीराना /
कहाँ दूर होता है अपने ही हाथों /
जलती चिता से कब जीवन /
आया है वापिस ।

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