गुरुवार, 15 जुलाई 2010

तुम्हारी शून्य की ओर देखती हुईं आखें

तुम्हारी शून्य की ओर देखती हुईं आखें /
और अपने आँचल में /
सितारों को ताकने की योजना /
उसी दिन शुरू हो गई थी /
जिस दिन तुम्हारे माथे पर /
उभरी थे पहली शिकन /और कंपकपाये थे होंठ /
सहमे थे कदम चलन से /
वक्त की पैनी धा पर /
क्यों कि संस्कारों की /जकड़न महसूस की थी तुमने /
तब पिरो डाले थे मोती /
रिक्त हो गया था आसमान /
सपनों के बादलों से /
चल पड़ा था सिलसिला /
तलाशने का किसी को /तब बेबसी से हताश होकर /
भींच ली थीं मुट्ठियाँ /मुझे ज्यों का त्यों याद है /
क्यों कि मैं साक्षी हूँ गत ,आगत और ....?

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