गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -3

बरसों बाद हम करीब बैठे /
बरसों बाद बातें भी की
मगर लगा /
आत्मा कहीं भूल आये हैं ।

प्यार करने के लिए चाहिए /
जितना साहस /
उससे भी कठिन है किसी से /
नफरत करते रहना ।

प्यार की अग्नि में /
उड़ जाता है /
वाष्प बन कर /
नाराजगी का पानी ।

वह कोई सैलाब था /
मगर ठहरा नहीं /
काश रेगिस्तान भी /
न ठहरा होता ।

धुनें कितनी भी सघन हों /
टूटे हुए साज पर /
बजाई नहीं जातीं ।

किसी के कहने से क्या होता है /
हम तो हम हैं /
तुम्हारी तुम जानो ।

दूर तक जाती हुई सड़क /
अचानक जब मुड जाती है /
हमेशा लगता रहता है /
उधर से कोई आने वाला है .

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