रविवार, 11 जुलाई 2010

फिर से नया इक नाम देना

मीत मेरे तुम मुझे फिर से नया इक नाम देना ।
गर कभी गिरने लगूं तो हाथ मेरा थाम देना ।
खोज में मंजिल की पैरों में भी छाले पड़ गए ,
थक गया हूँ चलते चलते अब मुझे विश्राम देना ।
तन बदन झुलसा बहुत तन्हाइयों की धूप में ,
सब तपिश मिट जाए यों पलकों की शीतल छाँव देना ।
करके मैखाने से रिश्ता फिर भी प्यासा दिल रहा ,
जो मुझे मदहोश कर दे यार ऐसा जाम देना ।
उम्र भर टूटे हुए घुँघरू सा मैं बजता रहा ,
बाँट लें गम जिसकी रुनझुन ऐसे घुँघरू बाँध देना ।
गीत बन कर दर्द मेरे गूँज जाएँ इस फिजां दमन ,
बस वफ़ा को यार मेरे इस तरह अंजाम देना .

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