बुधवार, 14 जुलाई 2010

इक थैली के चट्टे बट्टे हैं

हम तुम दोनों इक थैली के चट्टे बट्टे हैं ।
राजनीति में साल पीढ़ियों तक के पट्टे हैं ।
जब भी कुर्सी मिल जाती हम खुश हो जाते हैं ,
जनम जनम के पाप अचानक ही धुल जाते हैं ,
वर्ना तो अंगूर बने पद लगते खट्टे हैं ।
काले धन के बिना सभी कुछ लगता सूना है ,
जितना ज्यादा लगा सको जनता को चूना है ,
गुंडा गर्दी की दम पर ही हंसी ठट्टे हैं ।
होकर खड़े मंच पर सरते नारी का सम्मान ,
और सिद्ध कटे इसको देवी सिया समान ,
किन्तु अकेले में मारें हम गिद्ध झपट्टे हैं ,
वैसे तो हम इक दूजे के घोर विरोधी हैं ,
अगर दुश्मनी हो जाये तो बहुत क्रोधी हैं ,
वर्ना हमने जाम हमेशा पिए इकठ्ठे हैं ।
राजनीति में आने का ध्येय नोट कमाना है ,
देश भक्ति की बातें करना महज बहाना है ,
वर्ना तो इसमें कितने ही लफड़े -रट्टे हैं ।
नहीं किसी से हुई हमारी कभी दुश्मनी है ,
मगर देश के गद्दारों से रही अंबानी है ,
इसीलिए तो चमचों को दे रक्खे कट्टे हैं ।
खेल भावना से हम हरदम राजनीति खेले हैं ,
चले भीड़ के साथ कभी या चले अकेले हैं ,
मगर लगाये नहीं कभी भी हमने सट्टे हैं .

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