गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -१

प्रायः ऐसा क्यों होता है /वह कभी नहीं सुनता /
जिसके लिए की जाती है प्रार्थना /
लिखी जाती है गजल ।

फूल होने के खतरे से /
अनभिज्ञ है कली /
कमजोर उंगलियाँ भी /
मसल सकती हैं उसे ।

कापसे सिलती हुई बीवी /
के बगल में बैठ कर /
कितना मुश्किल होता है /
कोई कविता लिखना ।

तुम्हारा पास बैठ कर मुस्कराना /
स बात की गारंटी है /
कल अकेले में /
मुझे उदास रहना है ।

अभी नाच रहा है जो /गा रहा है गीत/
कल इन्तजार करेगा /
फिर इसी आज का ।

जब तलक तुम देवी /
नहीं बन जातीं /
तब तलक नहीं जुड़ सकते /
मेरे हाथ प्रार्थना में .

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