सोमवार, 10 मई 2010

अपना दर्द सुनाने निकले

औरों को दुःख देने वाले अपना दर्द सुनाने निकले।
घेर लिया जब अंधियारों ने दीपक बुझे जलाने निकले।
औरों के किस्से चटखारे ले लेकर जो कहते थे,
उनके अपने घर से ढेरों मजेदार अफसाने निकले।
तन्हाई से घबराये तो भीड़ में जाकर बैठ गए,
जब लोगों के दिल में झाँका अंदर से वीराने निकले।
चिंगारी को खुद भड़काकर शोलों में तब्दील किया,
लपटों ने जब घेर लिया घर बाहर आग बुझाने निकले।
भोली -भली सूरत लेकर जो औरों को ठगते थे ,
इकदिन ऐसा धोखा खाया थाने रपट लिखने निकले।
सबकी नाव डुबाने वाले वक्त आखिरी जब आया तो ,
इक कागज की कश्ती लेकर खुद को पार लगाने निकले.


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