सोमवार, 10 मई 2010

इक जमाना

लगता है इक जमाना हरपल तिरे बिना ।
इक साँस भी है जीना मुश्किल तिरे बिना ।
पूछा है आईने ने मुझसे मैं कौन हूँ ,
कुछ भी नहीं है मेरा परिचय तेरे बिना ।
दम तोडती हैं लबपर मायूस हो तबस्सुम ,
आवाज में दरारें पड़गईं तिरे बिना ।
महफ़िल में सितारों की उजालों के कहकहे,
अंधेरों ने छीन लीं हैं खुशियाँ तिरे बिना।
मझदार में है कश्ती डूबेगी मेरी तै है,
कैसे मिलेगा साहिल मुझको तिरे बिना।
लम्बा सफ़र है कितना फिसलन भरी उमर का,
कैसे करूँगा पूरा तनहा तिरे बिना .

3 टिप्‍पणियां:

  1. "महफ़िल में सितारों की उजालों के कहकहे,
    अंधेरों ने छीन लीं हैं खुशियाँ तिरे बिना।"
    बहुत खूब

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  2. अच्छी बन पड़ी हैं लाइनें...
    पूछा है आईने ने मुझसे मैं कौन हूँ ,
    कुछ भी नहीं है मेरा परिचय तेरे बिना।

    स्वागत है....

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