रविवार, 30 अक्तूबर 2011

उतर जाता है


जैसेचढ़ती   हुई नदी का ज्वार उतर जाता है .
कैसा भी हो नशा एकदिन यार उतर जाता है .
मानामैंने   लफ्ज़ छुरी से भी पैना होता है ,
लेकिन हर चाकू का देखा धार उतर जाता है .
बड़े सफीने डूब गए पर एक आदमी दरिया में ,
इक तिनके का लिए सहारा पार उतर जाता है .
तनहा यूँ तो बोझ ग़मों का बहुत बड़ा लगता है ,
लेकिन पाकर साथ किसी का भार उतर जाता है.
बजती हुई सुरीली वीणा बड़ा सुकूं देती है ,
मुश्किल तो तब होती है जब तार उतर जाता है .
चढ़ता नहीं दुबारा चाहे कितनी भी कोशिश हो ,
शख्स किसी की नजरों से इक बार उतर जाता है 

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