रविवार, 30 अक्तूबर 2011

तुम्हारी ग़ज़ल


बड़ी खूबसूरत तुम्हारी ग़ज़ल है .
मासूम दिलकश प्यारी ग़ज़ल है 
खिले फूल जिसमें मुहब्ब्बत के कितने 
बनी क्या गज़ब ये  क्यारी ग़ज़ल है .
लिखी तुमने इसमें जितनी भी बातें ,
लगता है मानों हमारी ग़ज़ल है .
 मुझे रात भर नींद आती नहीं है ,
जेहन पे रहती जो तारी ग़ज़ल है .
ग़ज़ल  तो कभी की ख़त्म हो गई पर ,
लगता है अब भी ये जारी ग़ज़ल है .
हर इक शेर पर चूम लेता हूँ इसको ,
रहती मगर फिर भी क्वांरी ग़ज़ल है 

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