शनिवार, 24 अप्रैल 2010

अचानक क्या हुआ है

इस शहर को ये अचानक क्या हुआ है।
खौफ चारोंतरफ फैला हुआ है ।
जिस किसी से पूछिए खामोश है वह ,
आदमी कितना यहाँ सहमा हुआ है ।
खिलखिला कर कल जो चेहरा हंस रहा था ,
आंसुओं से आज वो भीगा हुआ है।
नींद सारी रात अब आती नहीं है ,
मौत का जब से यहाँ डेरा हुआ है।
आदमी पढता नहीं है वो किताबें ,
प्यार को जिसमें खुदा लिक्खा हुआ है।
आग नफरत की ना जाने कब बुझेगी ,
रुख हवा का इस तरफ बदला हुआ है।
अब नहीं महफूज कोई भी यहाँ पर,
बारूद पर हर कोई यहाँ बैठा हुआ है।

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