बुधवार, 28 अप्रैल 2010

सपने

मुझे बहुत शौक है देखने का सपने।
वह पराये हों या हों अपने।
मगर मेरे सपने हमेशा ही सच होते हैं,
कुछ मुस्कराते और कुछ रोते हैं ।
कल ही की बात झिलमिलाती रात ।
मैंने अपनी मुट्ठी मैं भींच लिया आसमान,
यदि आपको यकीं न हो तो देखलो
मेरी हथेली पर भींचने के अमिट निशान।

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