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अनकही
विचार जो अव्यक्त रह गए
गुरुवार, 8 अप्रैल 2010
तुम्हारे liye
ग़ज़ल बन जा उंगा लब पर कभी जब गुनगुना ओ गे , उजाला बन के फैलूँगा दिए जब तुम जलाओ गे
उदासी होगी आँखों में घटा बन कर में बरसूँगा ,हंसूंगा फूल बन करके कभी जब मुस्करा ओगे ।
1 टिप्पणी:
unkahi
8 अप्रैल 2010 को 5:52 am बजे
keval tumharey liye
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