शनिवार, 12 जून 2010

तेरे बिना

तेरे बिना मुझे लगता है बहुत अकेलापन।
नहीं कहीं भी चैन जरा सा पाता है ये मन ।
मुझे अजनबी सी लगती है अपनी ही सूरत ,
जब भी देखा करता हूँ मैं भूले से दर्पण ।
अपनी ही परछाईं से मैं घबरा जाता हूँ ,
इक वीराना सा लगता है घर का ही आँगन ।
दवाजे पर दस्तक देती कभी हवा आकर ,
दिल -दिमाग में होने लगती अनजानी सन सन ।
तेरी तस्वीरों से बातें करता रहता हूँ ,
हर पल बढ़ता ही जाता मेरा दीवानापन ।
इंतजार है अब बस तेरे आने का मुझको ,
वर्ना मेरी सांसें कर देंगी देखो अनशन .

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