गुरुवार, 24 जून 2010

हे पत्थर के राम

बोलो कब तक मौन रहोगे हे पत्थर के राम .मानवता की हत्या का कब होगा पूर्ण विराम ।
सीता ,द्रोपदी और अहिल्या कब तक शोषित होंगी ,अग्नि परीक्षा देकर भी अबलायें दोषित होंगीं ,
पुरुष -न्याय में नारी -मुक्ति का क्या होगा अब नाम ।
एक सृष्टि है एक ही करता एक धर्म उपदेश ,भाषा ,जाति ,धर्म प्रान्त में बंटता जाता देश ,
मानव के निर्दोष लहू का कुछ तो होगा दाम ।
धरती,अम्बर ,चाँद सितारे ,पर्वत ,नदियाँ ,सागर,चला विजय करने को मानव इस युग से उस युग पर,
भौतिकता की दौड़ का आखिर होगा कौन मुकाम ।
कितनी पीड़ा अनाचार या और अधर्म सहना है ,क्या हरदम निर्नाथ गरीबों को बनकर रहना है ,
अथवा तू रचने वाला है फिर कोई संग्राम .

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