रविवार, 27 जून 2010

अभ्यास करें

आओ हम तुम अलग -अलग अब होने का विश्वास करें ।

न तुम झूठे न हम झूठे इस सच पर विश्वास करें ।

संबंधों की पुनर्व्याख्या करना बहुत जरूरी है ।

ताकि नाप सकें हम तुम में पनप रही जो दूरी है ,

बंधन खोलें मुक्त रहें क्यों नाहक हुआ उदास करें ।

झूठी कसमें ,झूठे वायदे ,झूठे क्यों संबोधन हों ,

झूठे रिश्ते ,झूठे नाते ,झूठे क्यों अभिनन्दन हों ।

अपनी-अपनी दुनिया में खुश रहने का प्रयास करें ।

लाभ -हानि का जोड़ -घटाना ,लेखा क्यों व्यवहारों का ,

मुंह पर मीठी -मीठी बातें पीछे वार कटारों का ,

कुछ पल सोचें तनहा -तनहा राहें नयी तलाश करें ।

दुरभि संधियाँ ,छल प्रपंच ,षड़यंत्र चाल और छद्म वेश ,

छोड़ रहें निस्पृह रखें न गाँठ जरा भी मन में शेष ,

खुली सोच और खुले विचारों का हम सतत विकास करें ।

निज प्रसिद्धि के संसाधन जैसे चाहें वैसे जोड़ें ,

मन में कलुषित भाव लिए क्यों आहत हम निश्वांश छोड़ें ,
अपने -अपने सपने देखें सपनों में मधुमास करें ।
पर इतना भर ध्यान रहे की जब जब भी हम तुम टकराएँ ,
खुले ह्रदय से मिलें सहज निष्कपट और निर्मल हो जाएँ ,
शब्दों की परिभाषा छोड़ें भावों का विन्यास करें ।
वर्ना दुनिया में कुछ भी रहता स्थिर नहीं सदा ,
अभी वक्त है पास हमारे कल होगा ये यदा कदा ,
क्यों रुक कर इक पल भी सोचें दूरी दिल की पास करें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें