रविवार, 13 जून 2010

अक्सर उससे

मैंने अक्सर कोशिश की है अपने को समझाने की। तेरी मेरी हुई मुहब्बत गुजरे हुए ज़माने की ।

मैंने तुझको भुला दिया है दिल से शायद तूने भी , बेमतलब है पिछली बातें फिर से याद दिलाने की ।
चाहे कोई वफ़ा करे या करे जफा भी जी भर के ,खाकर दिल पर चोट मुझे है आदत बस मुस्काने की ।
अगर चाहता मैं भी तेरा इस्तेमाल कर सकता था ,लेकिन मैंने तुझे इजाजत दी खुद के मिट्जाने की।
ढलते ढलते शाम अचानक तेरी याद सताती है ,हो जाती है मेरी हालत जैसी होती दीवाने की।
दिल की बेचैनी बढ़ जाती नहीं समझ कुछ आता है ,यादें जिन्दा रखतीं हैं चाहत होती मरजाने की.

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