सोमवार, 21 जून 2010

तुझ तक दिल की बात प्रिये

आखिर कैसे मैं पहुँचाऊँ तुझ तक दिल की बात प्रिये .इसी सोच मेंदिन कटता है इसी सोच में रात प्रिये ।
जब से तुझको देखा मैंने मिलने की इक बेचैनी है ,तुझको लेकर मचल रहे हैं कितने ही जज्बात प्रिये ।
तेरी सूरत में ना जाने कैसा दिलकश इक जादू है ,जिसको देखे बिना नहीं होती दिन की शुरुआत प्रिये ।
तेरी तुलना भले चाँद से दुनिया वाले करते हों ,मगर करूँ मैं तेरी तुलना मेरी क्या औकात प्रिये ।
काश तरस आता तुझको यूँ मुझ पर क्या क्या गुजरी है ,छुपे नहीं होते तुझसे बेशक मेरे हालत प्रिये ।
तेरा औरों के संग हंस हंस कर बातें करना हरदम ,तुझे खबर क्या मेरे दिल पर होते हैं आघात प्रिये ।
वैसे मुझको पसंद नहीं हैं अश्क बहाना बेमतलब ,लेकिन तेरी याद शुरू कर देती है बरसात प्रिये .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें