मेरी जिज्ञासाओं का तू एक मात्र अब हल है। मैं हूँ बीता वर्तमान तू आने वाला कल है ।
मेरा क्या है थका हुआ टूटा हरा मानव हूँ , इस जीवन का बोझ उठाये चलता फिरता शव हूँ ।
मैं हूँ इक निस्पंद ह्रदय और तू संचरित हलचल है ।
जब भी देखा स्वप्न कोई आँखों में हुई चुभन है ,होठ हँसे जो अनायास तो पाई बस दरकन है ,
मैं मुरझाया हास्य और तू मुक्त हंसी निश्छल है ।
मेरी पीड़ाओं ने जब भी गीत कोई गाया है ,दूर -दूर तक खिंचा हुआ इक सन्नाटा पाया है ,
मैं तो हूँ अवरुद्ध कंठ तू मुखरित हुई गजल है ।
तेरे हर स्पर्श में लगता जैसे जादू -सा है ,जलते जख्मों को मेरे मिल जाती शीतलता है ,
मैं हूँ प्यासी रूह और तू पावन गंगाजल है .
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