सोमवार, 28 जून 2010

मैंने अक्सर कोशिश की है

मैंने अक्सर कोशिश की है अपने को समझाने की ।
तेरी मेरी हुई मुहब्बत गुजरे हुए ज़माने की ।
मैंने तुझको भुला दिया है दिल से शायद तूने भी ,
बेमतलब हैं पिछली बाएँ फिर से याद दिलाने की ।
चाहे कोई वफ़ा करे या करे जफा भी जीभर के ,
खाकर दिल पर चोट मुझे है आदत बस मुस्काने की ।
अगर चाहता मैं भी तेरा इस्तमाल कर सकता था ,
लेकिन मैंने तुझे इजाजत दी खुद के मिटजाने की ।
ढलते ढलते शाम अचानक तेरी याद सताती है ,
हो जाती है मेरी हालत जैसी होती दीवाने की ।
इल की बेचैनी बढ़ जाती नहीं समझ कुछ आता है ,
यादें जिन्दा रखतीं हैं चाहत होती मर जाने की .

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