गुरुवार, 17 जून 2010

रखे हाथ पर हाथ

रखे हाथ पर हाथ भला क्या बैठे रहना .सूनी -सूनी दीवारों को तकते रहना ।
खोलो घर के द्वार निकल कर बाहर आओ ,चले जहाँ तक राह वहां तक चलते जाओ ,
नई ऊर्जा सांस -सांस मैं भरते रहना ।
घोर अँधेरे की अपनी भी हद होती है , जहाँ उजाले की फैली सरहद होती है
निसंकोच होकर बस आगे बढ़ते रहना ।
मंजिल उसको मिली जिसे चाहत मंजिल की ,जिसने हरदम सुनी बात अपने ही दिल की ,
मौसम तो मौसम है रोज बदलते रहना ।
दरवाजे तक खुशियाँ कब आतीं हैं चलकर ,इन्हें मनाना पड़ता कुछ आगे बढ़ कर ,
इनके लिए हमेशा ही सहते रहना ।
इस दुनिया ने सदा उसे ही नमन किया है ,जिसने अपनी इच्छाओं का दमन किया है ,
इधर -उधर की बातों से बस बचते रहना ।
सब को इक मौका मिलता है यूँ जीने का ,होंठों पर मुस्कान लिए आंसू पीने का ,
धीरे -धीरे कदम कदम बस बढ़ते रहना .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें