गुरुवार, 24 जून 2010

अपनापन

कहाँ तलाश करूँ अपनापन।
ढूंढा कितना भीगी पलकों में ,जीवन की सूनी सड़कों में ,
देख लिया हर मन का दर्पण। कहाँ .....
प्रीतम की बाँहों में देखा ,प्रेमी की आहों में देखा ,
छान लिया खुशियों का उपवन .कहाँ ......
हर पतझड़ और बहारों में ,रवि चंदा और सितारों में ,
पाया इक सपना सा निर्जन .कहाँ ....
मंदिर-मस्जिद गुरुद्वारों में ,गंगा -जमुना की धारों में ,
मिटी नहीं इक मंकी उलझन .कहाँ...
प्रकृति के हर कण में देखा ,प्रलय के प्रतिछन में देखा ,
सुना बहुत है करुना क्रंदन .कहाँ .....
धन वैभव का अर्जन देखा ,परमाणु का सृजन देखा ,
देखा दोनों का पागलपन .कहाँ ....
यों खोजा कई हजारों में ,आयु के तीन कगारों में ,
पाया बस केवल सूनापन.कहाँ...
सांसों के सरगम में ढूंढा ,म्रत्यु के हर ख़म में ढूंढा ,
गिनी बहुत हैं दिल की धड़कन .कहाँ ...

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