गुरुवार, 24 जून 2010

अब सोना बेकार है

जागो -जागो देशवासियो अब सोना बेकार है। दुश्मन छाती पर चढ़ आया हमें रहा ललकार है ।
जात -पांत के भेद मिटा दो कूटनीति की चालों को,मजहब की दीवार गिरा दो और मिटा दो पालों को ,
सबसे पहले देश हमारा फिर कोई दरकार है ।
आखिर कब तक सहन करोगे शत्रु की मनमानी को ,कितनी ठोकर और चाहिए बोलो स्वाभिमानी को ,
अगर अभी भी खून न खौला तो जीवन धिक्कार है।
सर्वोच्च्च सदन है प्रजातंत्र का संसद भवन हमारा ,आकर कोई करे आक्रमण आतंकी हत्यारा ,
जीवित रहने का धरती पर उसका क्या अधिकार है ।
कलम आज से आग लिखेगी भारी लपटों वाली ,दुश्मन के अमानों को अब खाक बनाने वाली ,
शब्द -शब्द कागज़ पर अब होगा बस अंगार है .

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