रविवार, 27 जून 2010

जीने का हक़ है

सबको अपने तौर तरीकों से जीने का हक़ है ।
इसमें दखलंदाजी करना सच पूछो नाहक है ।
कभी किसी से नहीं मुहब्बत मांगे से मिलती है ,
ये तो कली किसी के दिल में खिलती ही औचक है ।
एकबार खिल जाने पर मुरझाना इसका मुश्किल ,
चाहे कोई कितनी भी कोशिशें करे बेशक है ।
करने वाले प्यार इबादत इसे मानते रब की ,
वर्ना तो इस दुनिया में सब कुछ ही इक नाटक है ।
जिसे मुहब्बत हो जाती है समझो पाली दौलत ,
नहीं कभी कम होती देते -देते जाता थक है ।
बेखबर सभी से फिरता वह अपनी ही मस्ती में ,
दीवानों की तरह सुबह से लेकर शाम तलक है .

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