रोते रोते मुस्काने का मुझे तजुर्बा है .सब कुछ खोकर भी पाने का मुझे तजुर्बा है ।
जब भी मुझको ठोकर दी बेरहम ज़माने ने ,गिरते गिरते थम जाने का मुझे तजुर्बा है।
अपनों ने जब गैर समझ कर ठुकराया मुझको ,बेगानों के अपनाने का मुझे तजुर्बा है।
मेरे प्यार का सिला मिला जब मुझको तन्हाई ,अपने दिल को बहलाने का मुझे तजुर्बा है।
चूर चूर होते देखा जो अपने खाबों को ,तभी अचानक जग जाने का मुझे तजुर्बा है ,
थोड़ी सी खुशियों के बदले अंगारे लेकर .तपकर कुंदन बन जाने का मुझे तजुर्बा है.
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अच्छी गज़ल.
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