रविवार, 1 अगस्त 2010

रामायण -1

राम जन्म
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( १)
मेरे भगवन मेरी हस्ती तेरे दम ही से कायम है ।
जमाने को फना है और तेरी हस्ती ही दायम है ।
निजामे आलमे हस्ती तेरे बल ही पे सालम है ,
तुझे ही फिक्र है सब का तो फिर किस बात का गम है ,
मेरे मालिक तू मेरे हाल पर हरदम नजर रखना ,
सुनाता हूँ कहानी इक ज़रा गौर से सुनना ।
( २)
रघुकुल वंश के राजा दशरथ निपूते थे ।
न दौलत की कमी थी और न शोहरत के वह भूखे थे ,
जो सच पूछो तो उन से असल में भगवान् रूठे थे ,
बिना फल ही के मुरझाये हुए पसर मुर्दा बूते थे ,
चमन में रह के भी उनको चमन से हाय नफरत थी ,
मिला था यों तो सब कुछ ही मगर बेटे की चाहत थी ।
( ३ )
यही गम था उन्हें दिन रात ही जो खाए जाता था ,
बुलाकर एक दिन अपने वजीरों से यों फरमाया ,
" मैं ऐसी जाह व हस्मस और दौलत लेके भर पाया ,
मैं शोहरत का नहीं भूखा मैं शोहरत लेके पछताया ,
मेरा ये राज ले लो और बेटा दे दो इक मुझको ,
यही दौलत यही शोहरत यही इस्मत मुझे दे दो ।
( ४ )
उन्हें भी गम था वह भी चुपके -चुपके आह भरते थे ,
नमक का हक़ अदा करने की सब तदवीर करते थे ,
सभी सर जोड़ते और अपनी किस्मत पर बिगड़ते थे ,
इसी इक फिक्र में वह सब न जीते थे और न मरते थे ।
बाल आखिर सोच कर सबने ऋषि जी को बुलवाया ,
उन्हीं की कोशिशों ने यज्ञ का प्रबंध करवाया .


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