मंगलवार, 10 अगस्त 2010

रामायण -25

( ३१ )
ये सुना तो दशरथ जी गिर पड़े उन्हें दिल का दौरा पडा मानो ,
हुए यकबयक बेहोश वह कि था कांपता उनका तन बदन ,
कि थे अश्क आँखों से बह रहे कि था चाँद को लगा ग्रहण ,
खुली आँख फ़ौरन तो यों कहा कि है राम जीवन का मेरे धन ,
आरी कैकेई मुझे ये बता मेरी जात से तुझे बैर है ,
मेरा राम आँख का नूर है न ही भरत से तुझे बैर है ,
मेरा राम आँख का नूर है न भात लाल भी गैर है ।
( ३२ )
ये कहा तो दशरथ जी फिर गिरे हुए यकबयक बेहोश फिर ,
हुए अश्क आँख से फिर रवां गया बुलबुला और होश फिर ,
कहा राम चन्द्र से आओ तुम भरे आखिर से उनके गोश फिर ,
रही बेक़सूर वह आप ही दिया राजा दशरथ को दोष फिर ,
ये कहा कि बाप का हुकुम है इसे कान खोल के तुम सुनो ,
तुम्हें हुकुम चौदह साल चलो राह जंगल की आज तो ।
( ३३ )
यूँ सुना तो राम ने यों कहा मुझे हुकुम ये मंजर है ,
मेरे दिल को इससे करार है मेरे दिल को इससे सरूर है ,
मेरी आँख होगी न तर कभी मेरे सर को इससे गरूर है ,
मेरी आँख नूर से पुर हुई मेरा दिल नशे में ही चूर है ,
मुझे हुकुम देते हैं ये पिटा मेरे भाग चेते हैं आज तो ,
ये है मौक़ा नादिर न खोउंगा मुझे वर में जाने का हुकुम है ।
( ३४ )
ये सुना तो दशरथ जी रो पड़े कहा कैकेई न तू जुल्म कर ,
अरी ईश्वर से तू खौफ खा अरी कर न मुझको तू बेबसर ,
ये कहा तो बेहोश हो गए रही उनको अपनी न कुछ खबर ,
गए राम बाप को छोड़ कर कि कौशल्या के द्वार पर ,
कि थी टकटकी लगी द्वार पर हुई बूढी आँखों में रौशनी ,
कि थे अश्क आँखों में आ गए कि हयात उसकी संवर गई .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें