शनिवार, 14 अगस्त 2010

रामायण -34

( ६७ )
नहीं तुम पे बाजिब है बात ये कि जहां से तर्क दफा करो ,
जो दे आसरा तुम्हें जीस्त में तुम उसी के साथ दगा करो ,
तुम अकेला छोड़ दो न एक पल मेरे वालिदें की दवा करो ,
मेरा चाहते हो जो हुकुम गर मुझे आज तुम न खफा करो ,
यही आफत का है रास्ता यही तो स्वर्ग की राह है ,
मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो यही मेरे दिल ही की चाह है ।
( ६८ )
ये सुना सुमित्रा तो रो पड़ा सुना हुकुम राम का चल दिया ,
नहीं दिल में ताब व तवाल थी कुछ वह तो हाय ख़ाक में मिल गया ,
दिया हांक रथ ही को वापिसी कि वह अब अयोध्या को चल पडा ,
ज्यों ही वह अयोध्या में आ गया कि था इक हुजूम में घिर गया ,
ये खा कि राम हैं अब कहाँ उन्हें छोड़ आये हो किस तरफ ,
ये खा कि वह तो हैं चल दिये तभी आ गया हूँ मैं इस तरफ ।

( ६९ )
गया फिर सुमित्रा रनिवास में जहां राजा दशरथ थे सो रहे ,
ज्यों चाप पैरों की थी सुनी वह तो एक पल ही में जाग पड़े ,
हैं कहाँ मेरे लाडले कहो क्यों न साथ वह आ गए ,
कि है दिल का चैन मिटा मिटा मुझे ले चलो जहां वह गए ,
मुझे उनके बिन न करार है कि सुकून सारा ही लुट गया ,
नहीं वस्ल मेरे नसीब में कि हूँ उनके हिज्र में जल रहा ।
( ७० )
कही बात सारी सुमित्रा ने लुटा राजा दशरथ का अचिन तब ,
हुए हाथ पाँव ही सल मन कि था दिल को उनके करार अब ,
गिरे औंधे मुंह वह जमीन पर मिटा आसरा ही तो दिल का तब ,
इन्हें यों हुआ महसूस फिर कि है आखिरी ही तो वक्त अब ,
कहा राजा दशरथ ने राम ही भरी एक ठंडी आह फिर ,
गई एक दम ही से जान निकल रही दिल की दिल ही में चाह फिर .

1 टिप्पणी:

  1. प्रशंसनीय प्रयास...जारी रखें.


    एक निवेदन:

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये

    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:

    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..जितना सरल है इसे हटाना, उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये.

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