गुरुवार, 12 अगस्त 2010

रामायण -३०

( ५१ )
ज्यों ही सुनी लक्ष्मण ने खबर वह भी राम के पास आ गए ,
कहा ऐसा लगता है राजा जी तो बुढापे में सठिया गए ,
उन्हें इश्क की है चटक लगी वह तो हुश्न ही पर हैं छा गए ,
उन्हें जिन्दगी से है काम क्या वह तो तंग हमसे हैं आ गए ,
मैं तो ऐसी बस्ती को छोड़ दूँ मुझको ऐसी नगरी से काम क्या ,
जहां दिल के सब ही गुलाम हों कि न हों दिमाग से आसना ।
( ५२ )
मैं तो साथ आपके जाउंगा मुझे जंगलों ही में ले चलो ,
ये तो देश पापी का देश है नहीं कोई अपना जो साथ हो ,
वहां आप हों वहीँ मैं भी हूँ कि न आप समझ कि हम हैं दो ,
मैं तो बस केवल हूँ आपका नहीं जानता कि हैं हम भी दो ,
मुझे हुकुम सादर हो जाने जां कि मैं जिंदगानी भी वार दूँ ,
मुझे है अकीदत ही आपसे कहो साथ आपके मैं चलूँ .
( ५३ )
ये सुना तो राम ने यों कहा - नहीं बाजिब तुम पे ये लक्ष्मण ,
करो सेवा मां बाप की यही फर्ज अपना है जाने मन ,
यहाँ राजपाट का काम है यहीं तुम लगाओ अपना मन ,
मुझे हुकुम वालिद अजीज है न यों मेरी खातिर जलाओ तन ,
यहाँ इशरतें यहाँ शरबतें यहाँ नियामतें यहाँ दौलतें ,
वहां जंगलों में मुसीबतें हैं नित नई वहां आफतें ।
( ५४ )
कहा लक्ष्मण ने कि भाई जी मेरी अर्ज ये ही है आपसे ,
मुझे नरक में न धकेलिए मुझे दूर रखिये ये पाप है ,
यहाँ मोह माया का राज है नहीं कोई प्यार भी जो करे ,
मेरे वालिदें तो हैं आप ही नहीं तख़्त मुझको ये चाहिए ,
जहां आप हैं वहां इशरतें जहां आप हैं वहां शरबतें ,
जहां आप हैं वहीँ दौलतें जहां आप हैं वहीँ नियामतें .

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