शनिवार, 7 अगस्त 2010

रामायण -20

( ११ )
तू राजा दशरथ की अब सगी मेरी बात रखियो ये याद तू ,
जिसे तू समझती है जाने जां नहीं है मुरव्वत की उसमें खू ,
नहीं आस्ति से वह आसना नहीं है मुहब्बत की उसमें बू ,
वहां घी के दीपक हैं जल रहे यहाँ तो अँधेरे ही चा र शू ,
यदि राज राम ने पा लिया तो भरत निभाएगा चाकरी ,
तेरी बंदगी तेरा माल व जर तेरी नौकरी तेरी जिन्दगी ।
( १२ )
वही खून की प्यासी है फिर रही तुझे मान जिस पे है जाने मन ,
वह कौशल्या तो है कैकेई न तू कर तबाह यों अपना तन ,
तुझे याकबत का ख्याल है तेरा पूत ही तो है तेरा धन ,
मेरे प्यार का तुझे वास्ता ज़रा कर यक शू तू अपना मन ,
तुझे भरत लाल की है कसम ज़रा दूर कर ले ये आफतें ,
तेरे हाथ ही में हैं शोहरतें तेरे पाँव चूमेंगिन शर्बतें ।
( १३ )
आरी बेवकूफ अब भी सुध भी ले ज़रा होश्कर ज़रा आँख खोल ,
क्या तू कर रही क्यों तू मर रही ज़रा दिल को अपने तू आज तोल ,
तुझे बात कहती हूँ काम की आरी दिल में रख तो न कोई झोल ,
ज़रा कब्ज ले ले तू हाथ में तेरे प्यार का है री खूब मोल ,
यही सब सुन यही तो मौक़ा है तू तो हाथ मलमल के रोयेगी ,
तुझे कोई पूछेगा भी नहीं तू ये नाव अपनी दुबोयेगी ।
( १४ )
+सुनी बात कैकेई ने ये जब कहा मंथरा से हुआ गजब ,
नहीं आँख फडकी थी बेबजह नहीं दिल धड़कता था बेसबब ,
तेरी बात पक्की है जाने मन मुझे इतना था मालूम कब ,
मुझे रास्ता तू ही दिखा तभी मिल सकेंगे मेरे भी लब ,
कहा मंथरा ने मानों यों ही - तू ये राजा से वर मांगले ,
मिले भरत लाल को राज और श्री राम को वनवास दे .

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