रविवार, 1 अगस्त 2010

रामायण -2

(५ )
सभी आली व अदनी हो गए उस यज्ञ में शामिल ,
किया था इंतजाम ऐसा कि सारे हो गए कायल ,
ये हक़ है कि अहलकारों से कोई भी न था बेदल ,
रियाया की मुहब्बत ने हर इक को कर दिया मायल ,
श्रंगी जी का आखिर ये करिश्मा रंग ले आया ,
कली झुकी ,हंसा गुंचा कि गुल ने कहकहा मारा ।
( ६ )
खुदा की रहमतें आईं अवध पर बेहिसाब आईं ,
हमाले की हवाएं फिर से संदेशे नये लायीं ,
हसीनों पर पर शबाब आया उम्मीदें दिल की बरआईं ,
भरीं किलकारीं बच्चों ने माएं दिल में मुस्काईं,
फिजा में नूर की बारिशें हुईं तारीकियाँ भायीं ,
हुआ मुंह पाप का काला कि सोईं किस्मतें जागीं ।
( ७ )
हुए कौशल्या रानी के यहाँ श्री राम जी पैदा ,
सुमित्रा ने था लक्षमण और शत्रुघ्न सा धन पाया ,
भरत कैकेई के जाये खिदमत में जो थे आली ,
ये चारों भाई थे जिन पर अयोध्या दिल से थी सैदा ,
यही थे नूर आँखों के इन्हीं से दिल में धड़कन थी ,
इन्होने याक्बत की दर हकीकत शान पैदा की ।
( ८)
तबियत रामचंद्र जी की इक खामोश दरिया थी ,
थी लक्ष्मण की तबियत में ज़रा तेजी ज़रा तल्खी ,
भरत के हाँ अकीदत और समादत की थी गहराई ,
मुहब्बत और उल्फत की थी शत्रुघ्न में गीराई ,
यही थे भाई चारों जिनकी अपनी ही तबियत थी ,
अख्वत और मुरव्वत उनकी अपनी ख़ास खसलत थी .


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