रविवार, 1 अगस्त 2010

रामायण -6

( २१ )
जनक जी का मिला सन्देश विश्वामित्र हर्षाये ,
यही अहसास था उनको बड़े इंसान घटे साए ,
खिली दिल की कली ऐसी कि गुंचे खिलके मुस्काये ,
मुरव्वत और मुहब्बत के तकाजे रंग ले आये ,
बला हिंद हो गई तैयारियां मिथला को जाने की ,
हुई तदवीर किस्मत से नया इक गुल खिलाने की ।
( २२ )
खबर ये जाके विश्वामित्र ने दी राम लक्ष्मण को ,
कहा - तुम दोनों भाई अब तो बस तैयार हो जाओ ,
हमें मिथला को जाना है अभी पल भर में तुम आओ ,
बुलाया है जनक ने तुम चलोगे न ? ज़रा बोलो ,
जनक राजा स्वंयवर अपनी बेटी का रचाएंगे ,
हमीं तो आबरू जाकर जनक की बचायेंगे ।
( २३ )
ऋषि के साथ आ पहुंचे जनकपुर राम और लक्ष्मण ,
सभी मित्ज्ला के वासी देखने आये रघुनन्दन ,
निछावर कर रहे थे सब उन्हीं पर अपना तन मन धन ,
हुआ पुरजोश इस्तकबाल दोई के कटे बंधन ,
वहां मेहमान क्या आये बहारें आ गईं सारी ,
खिजां का एक दिन भी हो गया रहना वहां भारी ।
( २४ )
हर इक मेहमान ने धाक अपनी जमाने की वहां ठानी ,
जो सच पूछो इन्होंने कदर ही अपनी न कुछ जानी ,
वहां तो पद गया इक इक की उम्मीदों ही पर पानी ,
हकीकत है न रैंकी उनके आगे भेंस भी कानी ,
बड़े बलवान बनते थे बड़े शहजोर बनते थे ,
मगर मिथला वासी घास भी उनको न देते थे .

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