बुधवार, 11 अगस्त 2010

रामायण २७

( ३९ )
तुम्हें बाप का तो ख्याल है मेरी जान मेरी भी बात सुन ,
तुम्हें फर्ज प्यारा है आज तो तुम्हें फर्ज ही की लगी है धुन ,
तुम्हें मां का प्यार है कह रहा ज़रा मां के दिल की भी बात सुन ,
मेरी जान मेरे भी वास्ते कोई राह चुन कोई राह चुन ,
मेरे लाडले मेरी जिन्दगी मैं ही जानती जो है दुःख सहे ,
ज़रा राजा जी से तो पूछ लो जो है प्यार सिक्कों में तौलते ।
( ४० )
नहीं चाहती हूँ मैं दौलतें नहीं चाहती हूँ मैं इशरतें ,
नहीं चाहती हूँ मैं हश्मतें नहीं चाहती हूँ मैं शौहरतें,
मेरी आँख से तुम अलग न हो - यही चाहती यही ख्वाहिशें ,
कि न बाल बांका भी हो सके कि न आयें दुनिया में आफतें ,
तुम्हें मैंने पाला है प्यार से तुम्हें मेरे पया की है कसम ,
मुझे साथ लेकर न जाओगे तो मैं छोड़ दूंगी ये अपना दम ।
( ४१ )
ये सुना तो राम ने यों कहा - मेरी जान यों न निढाल हो ,
न तू आंसुओं से यों चेहरा धो न तू हार अश्कों के यों पिरो ,
मैं तो लौट कर फ़ौरन आउंगा कि तू नूर आँखों का यों न खो ,
तुझे वास्ता मेरी जान का यों न अपने दिल का करार खो ,
मुझे हुकुम वालिद अजीज है नहीं कोई रास्ता जो रोक दे ,
ये कहा तो पाँव ही छूते कहा - अब तो जाने का हुकुम दे ।
( ४२ )
कहा जानकी ने यों राम से मेरे सर का ताज है आप ही ,
मेरे दिल का चैन हैं आप ही मेरी आप ही तो हैं जिन्दगी ,
यही इल्तजा यही अर्ज है यही हट मेरी यही जिद मेरी ,
जहां आप जायेंगे जाने मन वहीँ साथ आपके जाउंगी ,
मेरी आप आँखों का नूर हैं न हों आप दिल को हो क्यों सुकूं,
मुझे साथ जंगल में ले चलो जहां आप हों वहीँ मैं रहूँ .

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