बुधवार, 11 अगस्त 2010

रामायण -29

( ४७ )
मेरी मां ने मुझको ये सीख दी कि पति तेरी है जिन्दगी ,
तेरी याकबत का वह रास्ता कि तू कर उसी ही की बंदगी ,
जहां हो पति वहीँ तू भी रह यही बेखुदी यही आग ही ,
कि तू उसके सुख में सुखी रहे कि तू उसके दुःख में रहे दुखी ,
मुझे साथ जंगल में ले चलो यही इल्तजा यही अर्ज है ,
मुझे आप ही से तो प्यार है मुझे इश्क सादिक का मर्ज है ।
( ४८ )
मुझे वालिदें भी अजीज हैं मुझे आप भी तो अजीज हैं ,
मेरी जिन्दगी का हो माह्सिल मेरी आप इक ही तो चीज हैं ,
मुझे प्यार आप से है बहुत मेरे प्यार की दहलीज है ,
मेरी जिंदगानी है आपकी मुझे आप ही तो अजीज हैं ,
जहां पर पसीना गिराओगे वहां खून अपना गिराऊंगी ,
मैं तो साथ आपके जाउंगी मैं तो साथ आपके जाउंगी ।
( ४९ )
मुझे धूप छाँव से क्या गरज मुझे गर्मी सर्दी से काम क्या ,
मुझे और कुछ भी न चाहिए मुझे साया आपका मिल गया ,
मुझे घास फूलों की सेजहै मुझे खार जारों से वास्ता ,
मुझे चरण आप के चाहिए यही याकबत का है रास्ता ,
मुझे साथ जंगल में ले चलो यही आपसे मेरी अर्ज है ,
ये न हो कि नाहक ही मेरा खूं कभी आपही के तो सर चढ़े ।
( ५० )
ये सुना तो राम ने यों कहा - है अगर तुम्हारी यही राजा ,
तुम्हें साथ चलने की आरजू मेरे मुझे साथ लेने में आर क्या ,
मुझे और कहने से फायदा तुम्हें खुद पता है भला बुरा ,
मुझे दखल देने से काम क्या कि है दुःख उठाने का होंसला ,
यही राजा तो चलो मेरे साथ जंगल में जाने मन ,
नहीं मोह माया से किया गर्ज चलो हम तो जायेंगे अब तो वन .

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