शनिवार, 14 अगस्त 2010

रामायण -33

( ६३ )
ये खबर नगर में भी आ गई श्री राम वन को हैं जा रहे ,
कि हैं संग लक्ष्मण जानकी वह इसी ही ओर हैं आ रहे ,
कि है हुकुम चौदह साल का न वह मेल दिल में हैं ला रहे ,
यही यकबत का असास है ये विचार दिल में हैं आ रहे ,
ये सुनी खबर सभी रो पड़े चले रथ के पीछे ही पीछे सब ,
ज्यों ही देखा राम ने यों कहा - सभी आये हैं हुआ अब गजब ।

( ६४ )
हुई आखिर से तदवीर ये ज्यों ही आधी रात हो चल पड़ें ,
इन्हें सोता छोड़ के चल ही दें तभी जंगलों ही की राह लें ,
ज्यों ही उठे ये हमें पायें मत तभी अपने अपने घर बसें ,
हुई कारगर तदवीर ये गए गए रामम गए गए में गए वहां,
गए राम गुह के पास फिर था वह भील कौम का यानि सरह ,
वहां बड के दूध से आखिर से दिया अपनी जुल्फ को और रह ।
( ६५ )
कहा फिर सुमंत्र से राम ने चले जाओ अब तुम अयोध्या ,
लो ये रथ है ले जाओ वापिस अब यही तुम से मेरी है इल्तजा ,
कि हैं गंगा पार ही कर रहे कि है ईश्वर की सभी दुआ ,
हमें और कुछ नहीं चाहिए के है अब ख्याल ही दूसरा ,
कहो वालिदें को सलाम ही कि है अच्छे लक्ष्मण जानकी ,
यही देखना न उदास हो कि सबके चेहरे पे हो हंसी ।
( ६६ )
ये कहा कि सुमित्रा ने जाने मन मुझे अपने साथ ही ले चलो ,
मैं तो सिर्फ आप का दास हूँ मुझे खुश ही रखना है आपको ,
मुझे जिन्दगी नहीं चाहिए मेरी जिंदगानी तो आप हो ,
मैं तो साथ आपके जाउंगा मुझे साथ चलने का हुकुम दो ,
ये सुना तो राम ने यों कहा कि सुमंत्र साथ न तुम चलो ,
नहीं बात ये तो दुरस्त है कि अकेला साह को छोड़ दो .

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