रविवार, 1 अगस्त 2010

रामायण -9

( ३३ )
सुराहीदार गर्दन और पुरउम्मीद सीना था ,
थे बाजू लम्बे बहरे इश्क में दिल का सफीना था ,
वह था इक हुश्न बेपरवाह पत्थर क्या नगीना था ,
लड़ी थी मोतिओं की या कि माथे पे पसीना था ,
था बूटा कद छरेरा जिस्म शक्ल उसकी बड़ी भोली ,
बदन गोरा किताबी चेहरा आमद से फिस्ना महकी ।
( ३४)
इबादत के लिए कुछ फूल पत्तों की जरुरत थी ,
यही तो बस चमन में उनके आने की हकीकत थी ,
वह डाली पे जाते थे यही बस उनकी आदत थी ,
खलिश काँटों की सहने ही में उनको मिलती लज्जत थी ,
यही मीठी चुभन दिल को हमेशा मोह लेती है ,
हर इक गहराई और गीराई को ये तोह लेती थाई ।
( ३५ )
किताबी राम का चेहरा मगर थी सांवली रंगत ,
मुरादों के अभी दिन थे अभी मरने की थी चाहत ,
कि जुल्फों की परेशानी ही देती थी उन्हें लज्जत ,
सलोनी सांवली सूरत ही बन ग ई दिल की राहत ,
था लंबा सरों जैसा कद छरेरा था बदन सारा ,
थी छोटी उनकी पेशानी था खंजर नाम आबरू का ।
( ३६ )
कँवल जैसी थी आँखें नाक लम्बी और तीखी थी ,
थे पतले होंठ पत्ती गुल की उनके आगे फीकी थी ,
कमर उनकी तो सच पूछो कि चीते जैसी पतली थी ,
जिगर में सोज था लेकिन गर्दन शेरोन से तीखी थी ,
थी चकले जैसी छाती और बाजू उनके लम्बे थे ,
जलाल और दबदबा ऐसा कि फन्ने खां भी डरते थे .

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