सोमवार, 9 अगस्त 2010

रामायण -22

( १९ )
कहा राजा दशरथ ने जाने मन यों न दिल तू अपना उदास कर ,
तुझे मोतियों से मैं तौल दूँ ज़रा दिल की मेरी तू ले खबर ,
ज़रा हुकुम दे मुझे जाने जां नहीं प्यार मेरा है बेअसर ,
जो भी चाहे मुझसे तू मांग ले कि तू दिल में अपने न रंज कर ,
कहा कैकेई ने कि सोचलो यों ही हाथ मलमल के रोओगे ,
यों ही आंसुओं की झड़ी लगे यों ही चेहरा अपने को धोओगे ।
( २० )
कहा राजा दशरथ ने - गम न करो मुझे अपने दीदे का पास है ,
तेरे दिल में जो कुछ है मांग ले यही तो कॉल मेरा असास है ,
ये निभाऊं तो है सुकून मुझे ये न हो तो दिल भी निराश है ,
यही अपनी खू यही आबरू यही धरम की तो असास है ,
कहा कैकेई ने कि - कॉल दो कहा तुफ्र है जो पीछे हते ,
यही रीति है रघुवंश की यही कॉल जिस पर हैं हम चले ।
( २१ )
सुना कैकेई ने तो यों कहा ज़रा अब भी सोच तो लीजिये ,
कहीं आर हो कहीं हो झिझक मुझे पहले बतला दीजिये ,
कहीं टूट जाए न दिल मेरा मुझको अब भी चाहें तो नाटिये ,
जो भी जी में आये मैं मांग लूँ मुझे आप रुसवा न कीजिये ,
कहा राजा दशरथ ने गम न खा मेरी जां तुझ पे निसार है ,
मेरे दिल को तुझसे सुकून है मुझे कॉल देने में आर है ।
( २२ )
कहा कैकेई ने वचन भी दो यों ही बात करने से फायदा ,
मुझे धोखा देने से फायदा यों ही आह भरने से फायदा ,
नहीं जानकहने से फायदा नहीं मुझ पे मरने से फायदा ,
मुझे कॉल दे दो तो बात है तभी प्यार करने से फायदा ,
सुनी बात राजा ने यों कहा - मेरी जान कॉल हूँ दे रहा ,
जो भी चाहे तू मुझ से मांग ले यही कह रहा हूँ मैं वरमुला .

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