मंगलवार, 3 अगस्त 2010

रामायण -17

( ६५ )
हर इक रानी न फूली अपने जामे में समाती थी ,
हर इक अपने तरीके ही से लाड उन पर लुटाती थी ,
हर इक रानी मुहब्बत के नए जादू जगाती थी ,
जिसे देखो वह अपने ही को खुश किस्मत बताती थी ,
मुरादों के दिनों में इश्क फरमाने का दौर आया ,
करिश्मे नित नए उल्फत के दिखाने का दौर आया ।
( ६६ )
यही इक ढंग है जिससे मुकद्दर जाग जाते है ,
जो कुदरत के हैं कायल वह उसी के गीत गाते हैं ,
उसी के फैज से हम जिन्दगी के लुत्फ़ पाते हैं ,
उसी का है करम हम दर्द सारे भूल जाते हैं ,
इनायत है उसी की मंजिले अव्वल हुई पूरी ,
निगाहों की तो दूरी है मगर दिल की नहीं दूरी ।

वनवास
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( १ )
अभी चंद दिन ही की बात है चले राजा जी रनिवास में ,
वह समझ रहे थे जवान हूँ चले इश्क ही की भडास में ,
यों ही जिन्दगी थी गुजर रही थे वह नाजनीनों की आस में ,
कभी चोंचले थे प्यार के कभी मस्त रूप की वास में ,
नजर आईने में पड़ी ज्यों ही मानों आइना ही तो गिर पडा ,
कभी बाल थे अपने देखते कभी देखते थे वह आइना ।
( २)
कहा दिल में अब तो मैं ढल चुका मेरी उम्र भी तो गुजर गई ,
न संवर सकी है ये जिन्दगी न ही यकबत की है बात की ,
इसी ऐश व इशरत में हो गई मेरी ख़त्म सारी ही जिन्दगी ,
यही बेरुखी जो रही सदा तो करूंगा कैसे मैं बंदगी ,
चलो राज राम को सौंप दूँ वही तो अवध का है हुक्मरान ,
वही तो दिलों का है बादशाह वही तो भविष्य का है पासवान .

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