गुरुवार, 12 अगस्त 2010

रामायण -32

( ५९ )
दिया दिल को धीरज राम ने कहा आप मत घबराइये ,
कि न दिल में मैल हो आपके ज़रा मेरी जां मुस्कराइए ,
कि हैं साल चौदह साल मुख़्तसर कि न रंज दिल में यों लाइए ,
नहीं रोने धोने से काम कुछ मुझे दिल की बात बताइये ,
कहा ये तो तीनों ने ली विदा पहले वालिदः के नियाज को ,
कहा जाने मन चले अब तो हमें अब तो जाने का हुकुम दो ।
( ६० )
ये सुना तो बिजली तो गिर पडी दिल पे कारी सी चोट इक ,
मुझे साथ वन ही में ले चलो कि है दिल पे भारी चोट इक ,
नहीं मुझ से सहन ये हो सके ये है हाय नारी की चोट इक ,
किया उसने रुसवा जहां को है जग पे भारी ही चोट इक ,
कहा राम ने नहीं दोष कुछ ये ये तो अपने लिखे की बात है ,
नहीं भाग देखा किसी ने भी ये तो भाग देखे की बात है ।
( ६१ )
ये कहा तो पाँव ही छू लिए चले छोटी रानी के पास में फिर ,
कि दी शीष उसने भी आखिर से थी लौट आने की आस फिर ,
कहा पीठ देखी है जिस तरह है उसी पे चेहरा भी रास फिर ,
कि तू लक्ष्मण नहीं भाई है कि राम ही का है दास फिर ,
लिया चूम तीनों को फिर मानों कि वह करके रुखसत ही हो गए ,
ये थे राम लक्ष्मण व जानकी कि जो आन ही पर थे मर मिटे ।
( ६२ )
कहा राजा दशरथ ने इस तरफ कि सुमंत्र सुन तो लो ,
मेरे राम सीता व लक्ष्मण उन्हें सैर करने को ले चलें ,
उन्हें साथ लेकर जो जाओ जी उन्हें साथ लाकर ही तुम लौटो ,
ये न हो के आते ही सामने बड़े दुःख से हाथ ही तुम malo ,
ये सुना जो हुकुम तो चल पडा लिया इक हसीन सा रथ मयन ,
उसी वक्त घोड़ों को जोड़कर हुआ फिर तो तीनों का वन गमन .

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