मंगलवार, 3 अगस्त 2010

रामायण -14

( ५३ )
अवध में भी ये सन्देश मसर्रत का था भिजवाया ,
जिसे महाराजा दशरथ ने सरे दरबार पढवाया ,
खबर रनिवास में पहुंची तो मन हर इक का हर्षाया ,
मसर्रत से अवध का पत्ता -पत्ता नाच उठा था ,
जमीं पर पाँव टिकते ही न थे महाराजा दशरथ के ,
जो सच पूछो अयोध्या से सोये भाग जागे थे ।
(५४ )
इधर होने लगीं तैयारियां शादी रचाने की ,
गई दावत सभी सम्बन्धियों को जल्दी आने की ,
लिपाई और पुताई भी हुई हर इक घराने की ,
मची थी धूम अयोध्या में नए मेहमान आने की ,
हर इक लंगोटिया कहता था मैं भी साथ जाउंगा ,
बाला खुद आ गया निश्चित समय बरात सजने का ।
( ५५ )
उधर फ़ौरन जनक जी के यहाँ इक महर्षि आये ,
था इनका नाम परुशुराम ब्राह्मण कौम के जाए ,
वह हर ब्राह्मण के हामी थे वह हर स्त्री के दुश्मन थे ,
वहां आकर जनक जी से वह इस अंदाज से बोले ,
कहो राजन कुशल तो है कहो कुछ तो मुझे आखिर ,
नगर वासी भी गदगद हैं ये कैसी धूम है आखिर ।
(५६ )
ऋषि जी तिलमिला उठे जनक जी की बात सुनते ही ,
कड़क कर यों बोले - राजन बता किसकी है मौत आई ,
धनुष तोड़ा है शिव का किसने किसको है कजा लाई,
भला मैं पूछता हूँ जिन्दगी उसको न कुछ भाई ,
ये सुनते ही जनक राज तो गहरी सोच में डूबे,
नमाजों की ही रोते थे गले लेकिन पड़े रोजे .

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