( ३ )
किया राजा ने दरबार फिर लिया वजीर से मशवरा ,
ये तो राज राम को सौंप दो ये ही बोला हर इक वर मिला ,
कर दुआ कब्त की भी फिकर कुछ हो राजपाट में क्या पडा ,
हुआ दिन मुक़र्रर भी आखिर से सभी वक्त निश्चित भी हो गया ,
हुई गाँव -गाँव में घोषणा गई कूचे -कूचे में ये खबर ,
यही धूम -धाम थी हर जगह श्री राम बैंठेंगे तख़्त पर ।
( ४ )
वहां बच्चा -बच्चा ही साद था वहां नाचता था हर इक जवान ,
ये तो मसरदह था इक जा फिजा था मसर्रतों का बंधा समां ,
अजी दिल टटोले तो कोई यों कि ख़ुशी तो चेहरे से थी अयाँ ,
था हर इक जर्रा ही नाचतीं थी मसर्रतों की खुली दूकान ,
कि रोश -रोश पे लाताफतें कि चमन में तरावातें ,
कि कलि -कलि में नजाकतें कि था हुश्न या थी क्यामतें ।
( ५ )
सुनी मंथरा ने ये जब खबर गई कैकेई के वह पास ही ,
थी वह लाठी टेके ही आ रही कि थी पीठ पाँव को छू रही ,
हुई कैकेई के वह रूबरू तो वह चीख मार के रो पड़ी ,
कहा - हाय रे मैं तो लुट गई मैं तो मर गई मैं तो मर गई ,
सुनी बात उसने तो यों कहा - जरा ये बता ही ये बात क्या ,
किया तंग किसने है ये बता हुई छेड़ छाड़ क्या भला ।
( ६ )
किया नौकरों ने है तंग क्या ज़रा आज खोल तो अपना मन ,
नहीं भरत भी तो अब यहाँ गए साथ इनके ही शत्रुघ्न ,
कहीं दासियों ने है कुछ कहा - कहीं छेड़ बैठे हैं लक्ष्मण ,
हुई गुफ्तगू तेरी राम से आरी वह तो है दिल का चमन ,
है उसी से दुनिया ये बस रही है वही तो मेरी भी जिन्दगी ,
वही चमन है वही है सुकून वही इकबतवही बंदगी .
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