शनिवार, 7 अगस्त 2010

रामायण - 19

( ७ )
वही मेरे दिल का सरूर है वही मेरी नगाह का नूर है ,
वही मूसा और वह ही सला है वही कोह है वही टूर है ,
वही स्वर्ग है वही नरक है वही इकबत का गरूर है ,
वही जिन्दगी का है आसरा वही जिन्दगी का सरूर है ,
उसे राजपाट मिलेगा अब ये भी मसरदह सुन ले तू ,
तुझे जेवरों से मैं लाद दूँ तुझे हार दूंगी मैं नौलखा ।
( ८ )
तुझे बिस्तर दूंगी मैं कीमती कि है ईश्वर ने मेरी सुनी ,
हुई पूरी मेरी ये आरजू कि ताज राम के सर पर ही ,
मैं नाचती हूँ मैं झूमती हूँ मिरे चेहरे पर हंसी ,
जो भी चाहे मुझसे तू मांगले कि है बगिया दिल की मेरी हरी ,
यही वक्त है न चूक तू कि अब मेरी जान धोखा तू खाएगी ,
यही है घडी अब मांगले ये घडी गई तो न आएगी ,
( ९ )
सुनी मंथरा ने ये बात जब कहा - जाने मन ज़रा होश कर ,
तू कहे है लख्ते-जिगर जिसे उसे लग रहे हैं अजल से पर ,
तुझे अपनी होश भी है भला तुझे है जमाने की क्या खबर ,
श्री राम बैठेंगे तख़्त पर श्री राम बैठेगे तख़्त पर ,
यही धूम यही रंग है यही फिकर है यही चाल है ,
जिसे अपना कहती है तू भला वही जाने मन तेरा काल है ।
( १० )
तुझसे चक्की पिसवाई जायेगी तुझसे झाडू लगवाई जायेगी ,
तुझसे बिसता धुलवाए जायेंगे तुझसे चोटी करवाई जायेगी ,
तुझसे भांड़े मंज्वाये जायेंगे तुझसे रोटी पकवाई जायेगी ,
तुझसे कपडे सिलवाये जायेंगे तुझसे सब्जी मंगवाई जायेगी ,
तेरी कदर होगी तू ये फकत तुझको नंगा निचुड्वाया जाएगा ,
तुझसे भीख मंगवाई जायेगी तुझ पर रहम फरमाया जाएगा .

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