सोमवार, 2 अगस्त 2010

रामायण-12

( ४५ )
बड़े शहजोर बनते हो बड़े बलवान बनते हो ,
बड़े मुंहजोर बनते हो बड़े अनजान बनते हो ,
खुदाई का यही दावा बड़े भगवान् बनते हो ,
हकीकत है कि तुम वो तो असल में नादाँ बनते हो ,
ये शिव का है धनुष इस को मेरी बेटी उठाएगी ,
तुम्हारी वीरता के सारी दुनिया गीत गाएगी ।
( ४६ )
सुनी जब बात इतनी हो गया माहौल ही साकत ,
हवा भी हो गई साकत फिजा भी हो गई साकत ,
था नजारा भी सकत और नजर भी हुई साकत ,
फलक भी हो गया सकत जमीं भी हो गई सकत ,
वहां था हूका आलम मौत की छाई थी खामोशी ,
कि इतने में गरज के साथ खामोशी मानो टूटी ।
( ४७)
गरूर और नाज करना आपके हक़ में नहीं अच्छा ,
तकव्वर छोड़ दो राजन तकव्वर का है सर नीचा ,
हमें तो आपका अंदाज ये इक पल नहीं भाया ,
ये अंदाजे तकलीम आपको शोभा नहीं देता ,
बुला के घर में इज्जत लूट ली है आपने सबकी ,
शराफत हमने दुनिया में कहीं ऐसी नहीं देखी ।
(४८ )
यही लक्ष्मण थे तांबे की तरह जो तमतमा उठे ,
थीं आँखें सुर्ख अंगारे जो जैसे कोंदते शोले ,
वह सीना तान कर फिर से से दरबार यों बोले -
है जुर्रत किस्में इतनी जो जबां अपनी भी अब खोले ,
मुझे दें हुकुम भैया मैं धनुष ये तोड़ सकता हूँ ,
कलाई कब्रों नाखूत की मैं फ़ौरन मोड़ सकता हूँ .

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