बुधवार, 1 सितंबर 2010

रामायण -३५

                                ( ७१ )
  सुनी जब खबर ये बफात की गई रानियों की तो जान निकल ,
कहा  कैकेई ने तो दिल में ये गई राजा की तो बला ही टल ,
नहीं कुछ भी खौफ है मुझको अब मैं तो आजमाऊँगी  आज बल ,
मेरे भरतलाल को राज है मिला मेहनतों का मुझे भी फल ,
हुआ सारा शहर ही शोक में की था हूका मंजर ही सर बसर ,
न था होश तो किसी को वां   की थे हाल से सभी बेखबर .             
                         (७२ )
वहां गंगा पार भी हो गए ,गए भारद्वाज के आश्रम ,
दिया प्रेम भाव का दरस वां की था यकबत का यही भरम ,
वह थे चप्पे -चप्पे में घूमते की जहां की दीद ही थी अहम् ,
गए चित्रकूट वह आखिर से की था बन गया वहीँ अब अरम,
उन्हें चित्रकूट  ही भा गया की वहां की बात थी नई ,
उन्हें वां सुकून भी मिल गया वहां गंगा ज्ञान की बह गई .
                               ( ७३  )
यहाँ घी के दीपक जल रहे वहां एक शोर था मच रहा ,
जो ये देखा हाल कौशल्या ने कहा - मुझको दाग ही दे दिया ,
वह तो एक गश ही में गिर पड़ी न सुमित्रा से होश का ,
कहा चूड़ी हाथ की तोड़कर तेरे बिन  जिए भी तो क्या भला ,
कभी बाल अपने वह नोंचती कभी सीना अपना वह कूट्तीं ,
कभी छाती अपनी वह पीटतीं की वह जिन्दगी ही से तंग थीं . 
                               (७४ )
सुने बैन कोई भी संग दिल न था वह जो कोई पसीजता ,
की रुदन था वह अंदवह गेन की वहां तो सोग था छा रहा ,
ये विलाप दर्द से पुर ही था की था शीशा कान में घुल गया ,
की अवधपुरी हुई रांड थी न था कोई जीने का आसरा ,
गई भरतचरत को सूचना की चलोतुरंत अवधपुरी ,
ये सुनीखबर तो वह चल पड़े उन्हें मिल गई नई जिन्दगी .                

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