रविवार, 12 सितंबर 2010

.७१-रामायण

              (२९ )
पुल समुन्दर पे बांधा गया जाने मन ,
पार करने की थी वां हर इक को लगन ,
शुभ मुहूर्त पे था राम जी का गमन ,
फ़ौज चल ही पडी करने लंका दहन ,
एक चुटकी में पुल पार हो गया ,
आ गए राम और पाप हर इक धुला .
               ( ३० ) 
मेरे मालिक तेरे फैज की धूम है ,
तुझसे भूखों को हर वक्त खाना मिले ,
तू उम्मीदों से झोली हर इक के भरे ,
कूर चश्मों को तुझसे वसीरत मिले ,
तेरी रहमत से पूरी ये मंजिल हुई ,
मेरे दिल की कली आज खिल गई 

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