शनिवार, 11 सितंबर 2010

५६-रामायण

         सुग्रीव विजय
                 (१)
राम लक्ष्मण दोनों भाई आ गए पम्पा के तीर ,
दिल था गम की चोट खाए और थे आँखों में नीर ,
कोई भी साथी न था जो हर सके ह्रदय की पीर ,
थे वह खुद ही का रवां और आप ही थे उसके मीर ,
थी वह किष्किन्धा पुरी और राज था सुग्रीव का ,
भाई था बाली का वह और वानरों का मीर था .
               ( २ ) 
कोह की छोटी पे बैठे कर रहे थे गुफ्तगू ,
बात भी करते थे वह और देखते थे चार शू ,
सब थे बाली के सताए और था आँखों में लहू ,
जब नजर दौड़ाई आई उनको जासूसी के बू ,
यों कहा सुग्रीव ने बाली के ये जासूस हैं ,
ये खबर बाली को देंगे और मर जाउंगा मैं .
               ( ३ ) 
जाओ तुम हनुमान जी जाकर पता सारा करो ,
कौन हैं ये किसलिए आये हैं इनकी टोह लो ,
क्यों हुए जोगी भला ये सारा भेद मुझको दो ,
तुम बहादुर सूरमाँ हो काम तुम कर सकतेहो ,
चल पड़े हनुमान वां से भरके इक ब्राह्मण का भेष ,
आ गए वह टोह लेने छूट गया था जिन से देश .
              ( ४ ) 
राम लक्ष्मण से हुई यों गुफ्तगू हनुमान की ,
राज है सुग्रीव का ये नाम किष्किन्धा पुरी ,
नाम है हनुमान मेरा मैं हूँ अदना आदमी ,
जात है वानर मेरी और काम है मेरा चाकरी ,
कौन हैं आप और क्यों आये हैं ये फरमाइए ,
बन्दा नाचीज को दिलकी लगी समझाइये       

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