रविवार, 12 सितंबर 2010

७०- रामायण .

               ( २५ )
 ये सुना तैश लंकेश को आ गया ,
सूत ली उसने तलवार ही वर मिला ,
बात ही में तो हंगामा होने लगा ,
फिर विभीषण ने गुस्से को ठंडा किया ,
आग फिर उस की दम को लगाईं गई ,
ताकि जल जाए खुद ही हनुमान जी .
               ( २६ )
आग लगना ही दम की मुसीबत बनी ,
आज  बैठे बिठाए ही आफत मची ,
सारी लंका ही तो नजरें आतिश हुई ,
अब था मातम जहां नाचती थी ख़ुशी ,
लेके चूडामणि  आये  हनुमान जी ,
राम जी से मुसलसिल कहानी कही .
              ( २७ ) 
लेके चूडामणि हाल पूछा गया ,
हाल सारा ही तफसील से कह दिया ,
पुल बनाने का इक फिर इरादा हुआ ,
सारा मंसूबा तैयार भी कर लिया ,
आये किष्किन्धा पुर से वह  रामेश्वरम ,
पूजते थे वहां राम देरोहरम .
               ( २८ ) 
डूबती शै जो लहरों ही पे आ गई ,
फिर समुन्दर से बेहद लड़ाई हुई ,
जितने पत्थर थे सब पर खुदाई हुई ,
राम के नाम की महिमा गई गई ,
नील नल दोनों भाई ही थे कारीगर ,
उनकी कोशिश हुई आखिर से बार्बर .

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