मंगलवार, 14 सितंबर 2010

७६-रामायण

     ( १७ ) 
मेरी  ये बात सुन तू कान खोल कर ज़रा ,
मेरे नगीं हैं जमीं हैं व आसमां के देवता ,
मैं जोगियों को मुंह नहीं जहां में लगा रहा ,
हो छोकरों से गुफ्तगुं  मुकाबले की बात क्या ,
हो शाह से मुकाबला ये शाह की हयात है ,
की जोर ताकत और बल यही तो कायनात है .
           ( १८ ) 
ये जोर मेरी जिन्दगी ये जोर ही उमंग है ,
यही है साथ गर मेरे तो कल जहां संग है ,
नसीब इनसे जागते यही तो एक ढंग है ,
नहीं जोर जिसमें उसके रंग ही में भंग है ,
हो साधुयों से दोस्ती नहीं ये बात काम की ,
करूँ भला मैं किस लिए ठगों से आसतीं .
            ( १९ ) 
ये सुन के बात यों कहा - यही तेरा उसूल है ,
जो बात है तू कह रहा मुझे भी ये कबूल है ,
की जोर ताकत और बल यही तेरा रसूल है ,
की जोर ही के बल पे पाई पाई सब वसूल है ,
मैं इम्तहान ले रहा हूँ आज तेरे जोर का ,
हूँ टांग मैं जमा रहा उठाये कोई दूसरा .
            ( २० ) 
अगर तू जीत जाएगा मैं लौट जाउंगा तभी ,
तू जानकी का हो गया की जानकी तेरी हो गई ,
यही नहीं मैं उम्र भर करूंगा तेरी बंदगी ,
करूंगा तेरी चाकरी करूंगा तेरी नौकरी ,
अगर तू हार जाएगा तो मेरी भी एक शर्त है ,
की जानकी हो राम की यहाँ तू मुझको कॉल दे 

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