बुधवार, 15 सितंबर 2010

८३-रामायण

                ( ४५ ) 
तभी हुआ मुकाबला की घोर युद्ध छिड़ गया ,
की इन्द्रजीत और लखन में घोर युद्ध था हुआ ,
उसी से ही लक्ष्मण ने बढ़के वार कर दिया ,
की मेघनाथ लक्ष्मण का वार ये न सह सका ,
वह गिर पडा जमीं पर की हाथ कट के रह गया ,
इसी से ही लक्ष्मण ने उसका सर भी था कटा .
                 ( ४६ ) 
वह सर लिए चले ज्यों ही विजय के राग बज गए ,
की नाज जिनको खुद पे था वह ख़ाक ही में जा मिले ,
खबर गई ज्यों ही वहां तभी सभी ही रो पड़े ,
की मौत का समा बंधा की बुझ गए जले दिए ,
सुलोचना के पास हाथ मेघनाथ का गिरा ,
वह देखते ही रो पडी की दिल का चैन लुट गया .
                  ( ४७ )
तभी तो मांग पूछ गई हयात उसकी लुट गई ,
वह बेकरार हो गई वह चीख मार कर गिरी ,
उसे न होश कुछ रहा की मौत ही थी जिन्दगी ,
हवास में वह आ गई लंकेश से कहा यों ही ,
वाही थे मेरी जिन्दगी वाही थे मेरी याक्बत ,
उन्हीं के दम से सच की बन रहा था मेरा सत .
                 ( ४८ ) 
सती है मेरी जिन्दगी में चाहती हूँ मौत अब ,
मुझे तो सर ही चाहिए मरुंगी लेके उसको तब ,
मैं पास राम के चलूँ की चाहिए ये हुकुम अब ,
जबाब ये मिला तभी मैं रोकता हूँ तुझको कब ,
इसी समय ही लाइ सर तभी सती वह हो गई ,
वह मर गई थी जान से मगर मिली थी जिन्दगी .                ( ४५ ) 
तभी हुआ मुकाबला की घोर युद्ध छिड़ गया ,
की इन्द्रजीत और लखन में घोर युद्ध था हुआ ,
उसी से ही लक्ष्मण ने बढ़के वार कर दिया ,
की मेघनाथ लक्ष्मण का वार ये न सह सका ,
वह गिर पडा जमीं पर की हाथ कट के रह गया ,
इसी से ही लक्ष्मण ने उसका सर भी था कटा .
                 ( ४६ ) 
वह सर लिए चले ज्यों ही विजय के राग बज गए ,
की नाज जिनको खुद पे था वह ख़ाक ही में जा मिले ,
खबर गई ज्यों ही वहां तभी सभी ही रो पड़े ,
की मौत का समा बंधा की बुझ गए जले दिए ,
सुलोचना के पास हाथ मेघनाथ का गिरा ,
वह देखते ही रो पडी की दिल का चैन लुट गया .
                  ( ४७ )
तभी तो मांग पूछ गई हयात उसकी लुट गई ,
वह बेकरार हो गई वह चीख मार कर गिरी ,
उसे न होश कुछ रहा की मौत ही थी जिन्दगी ,
हवास में वह आ गई लंकेश से कहा यों ही ,
वाही थे मेरी जिन्दगी वाही थे मेरी याक्बत ,
उन्हीं के दम से सच की बन रहा था मेरा सत .
                 ( ४८ ) 
सती है मेरी जिन्दगी में चाहती हूँ मौत अब ,
मुझे तो सर ही चाहिए मरुंगी लेके उसको तब ,
मैं पास राम के चलूँ की चाहिए ये हुकुम अब ,
जबाब ये मिला तभी मैं रोकता हूँ तुझको कब ,
इसी समय ही लाइ सर तभी सती वह हो गई ,
वह मर गई थी जान से मगर मिली थी जिन्दगी .                ( ४५ ) 
तभी हुआ मुकाबला की घोर युद्ध छिड़ गया ,
की इन्द्रजीत और लखन में घोर युद्ध था हुआ ,
उसी से ही लक्ष्मण ने बढ़के वार कर दिया ,
की मेघनाथ लक्ष्मण का वार ये न सह सका ,
वह गिर पडा जमीं पर की हाथ कट के रह गया ,
इसी से ही लक्ष्मण ने उसका सर भी था कटा .
                 ( ४६ ) 
वह सर लिए चले ज्यों ही विजय के राग बज गए ,
की नाज जिनको खुद पे था वह ख़ाक ही में जा मिले ,
खबर गई ज्यों ही वहां तभी सभी ही रो पड़े ,
की मौत का समा बंधा की बुझ गए जले दिए ,
सुलोचना के पास हाथ मेघनाथ का गिरा ,
वह देखते ही रो पडी की दिल का चैन लुट गया .
                  ( ४७ )
तभी तो मांग पूछ गई हयात उसकी लुट गई ,
वह बेकरार हो गई वह चीख मार कर गिरी ,
उसे न होश कुछ रहा की मौत ही थी जिन्दगी ,
हवास में वह आ गई लंकेश से कहा यों ही ,
वाही थे मेरी जिन्दगी वाही थे मेरी याक्बत ,
उन्हीं के दम से सच की बन रहा था मेरा सत .
                 ( ४८ ) 
सती है मेरी जिन्दगी में चाहती हूँ मौत अब ,
मुझे तो सर ही चाहिए मरुंगी लेके उसको तब ,
मैं पास राम के चलूँ की चाहिए ये हुकुम अब ,
जबाब ये मिला तभी मैं रोकता हूँ तुझको कब ,
इसी समय ही लाइ सर तभी सती वह हो गई ,
वह मर गई थी जान से मगर मिली थी जिन्दगी .

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